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सहरसा

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सहरसा ,पुराणों के अनुसार द्वापर युग में श्री कृष्ण की पटरानी जाम्बवती के पुत्र साम्ब अतीव सुन्दर थे जिनके द्वारा श्री कृष्ण से मिलने आये महर्षि दुर्वाशा का तिरस्कार कर दिया गया और क्रोधित महर्षि दुर्वाषा साम्ब को कुष्ठ रोग से रूपक्षीण होने का श्राप दे बैठे |अब संपूर्ण यदुवंशी परिवार व्यथित हो गए | दैवयोग से नारद जी के आने पर उनके द्वारा साम्ब से सूर्य का तप करने को कहा गया और तत्पश्चात साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के किनारे सूर्य का कठोर ताप किया और जिसके फलस्वरूप भगवान् सूर्य प्रसन्न होकर उन्हें रोगमुक्त कर दिए| रोगमुक्त करने के साथ ही भगवान् भास्कर ने साम्ब को बारहों राशि में सूर्यमूर्ति की स्थापना का आदेश भी दिया | इसी क्रम में प्रथम मेष राशि के सूर्य की स्थापना हेतु तत्कालीन ज्योतिषियों की गणना के द्वारा श्री शिवजी की तपस्थली इसी कन्दाहा गाँव का चयन हुआ और द्वापर युग में श्रीकृष्ण पुत्र साम्ब के द्वारा कन्दाहा (कन्दर्पदहा ) में प्रथम राशि मेष के सूर्य की स्थापना हुई और ऋषि मुनियों द्वारा युगांतर से इनकी पूजा होती आ रही है | युगों बाद चौदहवीं सदी में जब मिथिला राज्य के क्षितिज पर ओईनवार वंशीय ब्राह्मण भवसिंहदेव राजा के रूप में उदित हुए और और दैवयोग से रोगग्रस्त हो गए तो उनके दरबारपंडित (लेखक रुद्रानंद झा के पूर्वज) पंडित बेचू झा की सलाह पर सूर्य भगवान् का पूजन एवं अनुष्ठान आरम्भ हुआ ,इस क्रम में महाराजा द्वारा सूर्यमंदिर के प्रांगन में अवस्थित सूर्य-कूप के औषधीय गुण संपन्न जल से स्नान एवं सेवन किया गया जिससे महाराज पूर्ण स्वस्थ हो गए एवं सुयोग्य दो पुत्र नरसिंहदेव एवं हरिसिंहदेव को प्राप्त कर अत्यंत हर्षित होकर जीर्ण पड़े मंदिर का जीर्णोद्धार एवं मूर्ती की पुनर्स्थापना कर भगवान् आदित्य के नाम से अपना नाम जोड़कर भवदित्य सूर्य का नाम दिया और तब से भवादित्य सूर्य के नाम से कंदहा में भगवान् सूर्य की पूजा अर्चना होने लगी | कंदहा गाँव सहरसा मुख्यालय से पश्चिम १२ किमी पर सतरवार (गोरहो) चौक से तीन किमी उत्तर पक्की सड़क से जुड़ा हुआ है जहाँ हजारों भक्तजन आते है और भगवान् भास्कर की पूजा अर्चना कर मनचाहा फल पाते हैं | महाभारत और सूर्य पुराण के अनुसार इस सूर्य मंदिर का निर्माण 'द्वापर युग' में हो चुका था। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र 'शाम्ब' किसी त्वचा रोग से पीड़ित थे जो मात्र यहाँ के सूर्य कूप के जल से ठीक हो सकती थी। यह पवित्र सूर्य कूप अभी भी मंदिर के निकट अवस्थित है। इस के पवित्र जल से अभी भी त्वचा रोगों के ठीक होने की बात बताई जाती है। यह सूर्य मंदिर सूर्य देव की प्रतिमा के कारण भी अद्भुत माना जाता है। मंदिर के गर्भ गृह में सूर्य देव विशाल प्रतिमा है, जिसे इस इलाके में ' बाबा भावादित्य' के नाम से जाना जाता है। प्रतिमा में सूर्य देव की दोनों पत्नियों 'संग्य' और 'kalh' को दर्शाया गया है। साथ ही 7 घोड़े और १४ लगाम के रथ को भी दर्शाया गया है। इस प्रतिमा की एक बड़ी विशेषता यह है कि यह बहुत ही मुलायम काले पत्थर से बनी है। यह विशेषता तो कोणार्क एवं देव के सूर्य मंदिरों में भी देखने को नहीं मिलती। परन्तु सबसे अद्भुत एवं रहस्यमयी है मंदिर के चौखट पर उत्कीर्ण लिपि जो अभी तक नहीं पढ़ी जा सकी है। परन्तु दुर्भाग्य से इस प्रतिमा को भी औरंगजेब काल में अन्य अनेक हिन्दू मंदिरों की तरह ही क्षतिग्रस्त कर दिया गया। इसी कारण से प्रतिमा का बाँया हाथ, नाक और जनेऊ का ठीक प्रकार से पता नहीं चल पाता है। इस प्रतिमा के अन्य अनेक भागों को भी औरंगजेब काल में ही तोड़कर निकट के सूर्य कूप में फेंक दिया गया था, जो १९८५ में सूर्य कूप की खुदाई के बाद मिले हैं। १९८५ के बाद यह मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन आ गया। पुरातत्व विभाग ने मंदिर की देख रेख के लिए एक कर्मचारी को नियुक्त कर रखा है। परन्तु सरकार की तरफ से इस मंदिर के जीर्णोधार एवं विकास के प्रति उपेक्षा ही बरती गयी है। वह तो यहाँ के कुछ ग्रामीणों की जागरूकता एवं सहयोग के कारण मंदिर अपने वर्तमान स्वरुप में मौजूद है। इनमे नुनूं झा एवं जयप्रकाश वर्मा समेत अनेक ग्रामीणों का सहयोग सराहनीय रहा है। इस मंदिर को बिहार सरकार के तरफ से प्रथम सहयोग तब मिला जब अशोक कुमार सिंह पर्यटन मंत्री बने। उन्होंने इस मंदिर के विकाश के लिए २००३ में ३००००० (तीन लाख) रु० का अनुदान दिया। परन्तु यह रकम मंदिर के विकास के लिए प्रयाप्त नहीं थी। फिर भी इस रकम से मंदिर परिसर को दुरुस्त किया गया। साथ ही मुख्य द्वार का निर्माण हो सका। परन्तु अभी भी इस मंदिर एवं इस पिछड़े गाँव के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है, जिससे कि इस अद्भुत मंदिर की गिनती बिहार के मुख्य पर्यटन स्थल के रूप में हो सके।

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सहरसा भारत के बिहार प्रान्त का एक शहर है। जिले के रूप में सहरसा की स्थापना 1 अप्रैल 1954 को हुई थी जबकि २ अक्टुबर 1972 से यह कोशी प्रमण्डल का मुख्यालय है। यहाँ कन्दाहा में सूर्य मंदिर एवं प्रसिद्ध माँ तारा स्थान महिषी ग्राम में स्थित है। प्राचीन काल से यह स्थान आदि शंकराचार्य तथा यहाँ के प्रसिद्ध विद्वान मंडन मिश्र के बीच हुए शास्त्रार्थ के लिए भी विख्यात रहा है।द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री बिहार श्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल का जन्मस्थल ।।

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